तरुण प्रकाश, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
मेरे बेटों,
मैं तुम्हारे पूर्वजों का भी पूर्वज और तुम्हारी संतानों की भी संतानों का भविष्य तुम्हारा देश, भारतवर्ष आज तुम्हें बहुत विवश होकर यह पत्र लिख रहा हूँ। इस पत्र के बहुत से अक्षर धुले हुये हैं क्योंकि इस पत्र को लिखने से पहले मैं हज़ार बार रोया हूँ। मैं सारी दुनिया को प्रेम, सद्भावना और शान्ति का संदेश देने वाला वही विश्वगुरू भारत हूँ जिसकी बुनियाद में ही अखंडता और एकता है लेकिन पिछले कई दशकों से मुझे तुमसे मात्र घोर निराशा ही मिली। आज मुझे महसूस हो रहा है कि मैं मात्र भूमि का एक टुकड़ा हूँ, तुम्हारी माँ गंगा मात्र एक साधारण सी नदी है और सदियों से तुम्हारी सुरक्षा में दिन-रात बर्फ की चादर ओढ़ कर कंपकंपा कर भी अनवरत अपना मस्तक आकाश में ताने हुये तुम्हारा बड़ा भाई हिमालय मात्र माटी और पत्थरों का एक विशालकाय ढेर भर है।
मैंने गंगा को चुपचाप आंसू बहाते देखा है – हिमालय को सिसकियाँ भरते देखा है। मुझे घोर आश्चर्य हुआ- लाखों बरसों से गुनगुनाती इठलाती दौड़ती गंगा आज थक कैसे गई? सदियों से एक आसमानी दीवार की तरह तुम्हारा रक्षक बन कर तन के खड़े हुये हिमालय के पाँव आज डगमगा कैसे रहे हैं? हजारों सालों से तुम्हारे पूर्वजों की थाती अपन सीने से चिपकाये आज मैं इतना बेचैन क्यों हूँ?और जब हम सबके दुख के कारणों की समीक्षा की तो मुझे पता चला कि हमें किसी ने बाहर वाले ने नहीं बल्कि सदैव भीतर से ही चोट पहुंचाई है। यह कहते हुये मेरा कलेजा फट रहा है मेरे पुत्र कि एकमात्र तुम ही हमारी महान् पीड़ा के कारण हो। तुम कितने अधर्मी और अपवित्र हो चले हो, संभवतः तुम्हें इसका रंचमात्र भी अंदाज़ नहीं है।
पहले छोटे छोटे राज्यों में बंटे तुम मात्र अपनी सीमाओं और धन-दौलत की हवस के अंधकार में एक-दूसरे का रक्त बहा कर अट्टहास करते रहे। दुनिया के हर आतंकी तानाशाह ने मेरे बदन पर पागल घोड़े दौड़ा-दौड़ा कर खून की नदियाँ बहाई और हमारे खजाने लूट कर ले गया। चंगेज़ खाँ, सिकंदर, मोहम्मद ग़ज़नवी और मोहम्मद गौरी, हर लुटेरे के लिये अंदर से देश का सदर दारवाज़ा खोलने वाले सदैव तुम ही थे मेरे पुत्र वरना किसी विदेशी की यह मज़ाल नहीं थी कि वह कभी मेरी आँखों से आँखें मिलाकर भी बात कर सके। ईस्ट इंडिया कंपनी को भी मेरे पुरज़ोर विरोध के बाद भी तुम्हीं ने शरण दी थी पुत्र और मैंने तुम्हारी नादानी की कितनी बड़ी कीमत चुकाई। मैं अपनी ही भूमि पर ढाई सौ साल बेड़ियों और हथकड़ियों में जकड़ा रहा और अपनी तबाही के तमाशे सरे आम देखता रहा।
मेरे पुत्र, मुझे शर्म आती है यह कहते हुये कि धन-दौलत, जागीरों और तमगों की तुम्हारी भूख ने अपने ही भाइयों का लहू पीना शुरू कर दिया और हर बार तुम डकार लेकर मात्र अपनी मूंछों पर ताव देते रहे। यह सब देख कर मैं कितना दुखी होता था, इसका अनुमान मात्र तुम्हारी माँ गंगा ही लगा सकती थी। इस पावन धरती ने तब युगों-युगों की दासता के बंधन काटने के लिये मेरे एक अत्यंत श्रेष्ठ पुत्र गांधी को जन्म दिया था जिसने प्राण पण से मेरी सेवा की और मेरी स्वतंत्रता का बिगुल फूंका। मात्र एक सूती धोती से बदन ढके मेरे उस महात्मा पुत्र ने मात्र सत्य और अहिंसा नामक हथियारों से एक दिन मेरे बंधन काट फेंके लेकिन तुम चैन से कब बैठने वाले थे। तुम्हारा षडयंत्र फिर काम कर गया और मेरे बदन पर हिंसा का आरा चला कर मुझे दो टुकड़ों में बाँट दिया गया और मेरे बदन का एक हिस्सा पाकिस्तान बना दिया गया। धार्मिक नफ़रत की नींव पर किया गया विभाजन भले ही दो देशों को अस्तित्व में ले आया हो लेकिन सीमा के इस पार और सीमा के उस पार, काटा तो मात्र मैं ही गया। तब तुम कितना जोर जोर से हँसे थे क्योंकि एक बार राज्य करने की तुम्हारी हवस की फिर जीत हुई थी।
मेरे एक और होनहार पुत्र सरदार वल्लभभाई पटेल ने मेरे कटे-फटे शरीर को बड़े ही जतन से सिया और चाहे वे काश्मीर के राजा हरिसिंह रहे हों या हैदराबाद के निज़ाम, मेरे लिये सबसे बैर ले लिया लेकिन मुझे संपूर्णता प्रदान की। मैं एक बार फिर अखंड भारत बन गया।
लेकिन मेरे पुत्रों, षडयंत्र तो तुम्हारी नस-नस में व्याप्त है। तुमने अपने निजी स्वार्थ की आंच में सदैव मेरा सीना चीरा है, हमेशा गंगा को मैला किया है और सदा हिमालय का सिर नीचा करने का प्रयास किया है। सारी दुनिया को शान्ति का सबक पढ़ाने वाले मेरे पुत्र गांधी का सीना तुमने रिवाल्वर की गोलियों से छलनी कर दिया। उस दिन मुझे पहली बार अहसास हुआ था कि तुम्हारी शिराओं में मेरा लहू नहीं, किसी गंदे नाले का पानी बह रहा है पुत्रों।
गांधी, सुभाष, आज़ाद, अशफाक और भगत सिंह जैसे मेरे होनहार पुत्रों ने अपने प्राण निछावर कर अपने खून से भीगी जिस आजा़दी नामक नवजात कन्या रत्न को तुम्हारे सौभाग्य की देवी बना कर पूजने के लिये तुम्हारे हवाले किया था, मुझे घिन आती है यह कहते हुये कि पहले ही दिन से तुमने उस शिशु कन्या के साथ बलात्कार करना प्रारंभ कर दिया। मेरा सिर धड़ से अलग करने के बाद भी, मेरे शरीर को दो भागों में बांटने के बाद भी तुमने मुझे कब चैन से रहने दिया। तुमने धर्म और संप्रदायों में मुझे विभाजित कर दिया, मुझे जातियों-उपजातियों में बांट दिया, मुझे भाषाओँ और स्थानीयता में वर्गीकृत कर दिया और कभी प्रान्तों के नाम पर, कभी भाषाओँ के नाम पर और कभी जातियों के नाम पर मेरा दोहन करते रहे।
तुमने कभी खालिस्तान के नाम पर खून की होली खेली तो कभी आज़ाद काश्मीर के नाम पर। कभी तुम रेड कार्पेट क्षेत्र में नक्सलियों के रूप में हिंसा का नंगा नाच करते रहे तो कभी उग्रवादी बन कर बोडोलैंड की स्थापना की धमकी देकर जनसमुदाय को आतंकित करते रहे।
तुम्हारी ओछी मानसिकता आरक्षण के नाम पर बार-बार राजनीति करती रही और रोटी का बंदरबांट तरीका हर बार केवल और केवल तुम्हें ही मज़बूत करता रहा। देश की राजनीति जिसे मेरे उत्थान और विकास की राह प्रकाशित करनी थी, वह मात्र तुम्हारी महफिल में अपने पाँवों में घुंघरू बांध कर नाचने को विवश हो गयी। देश की राजनीति का हरियाला पथ हर बार सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे द्वार तक जाकर रुक गया। मुझे विश्वास है कि अगर राजनीति मेरे हित में कार्य कर सकने को स्वतंत्र होती तो आज मेरी पिछड़ी से पिछड़ी संतति भी सफलता के शिखर पर विराजमान होती और आरक्षण का भिक्षा पात्र कब का तोड़ कर फेंक दिया गया होता और आज की आरक्षित पीढ़ियाँ भी आत्मसम्मान व गर्व से देदीप्यमान होतीं लेकिन तुमने तो उनका यह अधिकार भी छीन लिया।
क्रमश…..